मेरी नजरो से छुप नही सकती


तुम जो मुझको देखकर घूँघट काढ़ लेती हो
और यूँ हया का पर्दा डाल लेती हो
जैसे चाँद को घटाये छुपा ले शर्म से
पर चांदनी होती नही अलग अपने चंद्र से
लाख बादल हो सही 
पूर्णिमा अमावस बन नही सकती
लाख पर्दा कर ले तू ये पर्दानशीं
मेरी नजरो से छुप नही सकती

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