इतना करीब होकर भी दूर हूँ


तुझसे इतना करीब हूँ
फिर भी मैं इतना बदनसीब हूँ
देखता हूँ रोज तुझको, पर पा नही सकता
अहसास है तेरा पर, करीब आ नही सकता
मेरी क्या खता है क्या गलती मेरी है
खो जाता हूँ कही जब नजरे मिलती है
तू मुझे चाहे या न चाहे ये तेरी मर्जी है
पर करना यूं नजरअंदाज भी खुदगर्जी है

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